RAM- KAL, AAJ AUR KAL.

"राम - कल, आज और कल"

"राम कोई इतिहास के पन्नों में कैद नाम नहीं, बल्कि समय की हर धड़कन में जीवित विचार हैं।"

"त्रेता के राम"

राम केवल एक राजा नहीं थे, वे मर्यादा और धर्म के ऐसे अमर दीपस्तंभ थे जिनकी प्रकाश किरणें युगों-युगों से मानवता को आलोकित करती रही हैं। उनका जीवन सत्य, कर्तव्य, त्याग और न्याय की ऐसी अद्वितीय गाथा है, जिसने न केवल एक आदर्श समाज की नींव रखी, बल्कि यह भी सिखाया कि धर्म का पालन कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी कैसे किया जा सकता है। राम ने अपने हर निर्णय से यह सिद्ध किया कि शक्ति का अर्थ अन्याय नहीं, बल्कि धर्म की रक्षा है; सत्ता का उद्देश्य अहंकार नहीं, बल्कि लोककल्याण है। इसलिए वे केवल इतिहास का हिस्सा नहीं, बल्कि जीवन का आदर्श हैं, जिनकी प्रेरणा आज भी हमें सही मार्ग पर चलने की शक्ति देती है।”

 

राम का चरित्र केवल एक आदर्श पुत्र का नहीं, बल्कि आदर्श भाई, पति और राजा का भी है। लक्ष्मण के प्रति उनका स्नेह, भरत के प्रति विश्वास और सीता के प्रति निष्ठा, इन सबमें आदर्श का उच्चतम रूप दिखाई देता है। उनके लिए सत्ता कोई लालच नहीं थी। यह बात तब प्रमाणित हुई जब भरत ने सिंहासन लौटाने का आग्रह किया, पर राम ने कहा – “मैं वचन से बंधा हूँ, जब तक चौदह वर्ष पूरे नहीं होते, अयोध्या लौटना धर्म के विरुद्ध होगा।” यह उत्तर केवल वचन का पालन नहीं था, बल्कि समाज को यह सिखाना था कि कानून और मर्यादा से  ऊपर कोई नहीं।

 

राम के युद्धों में भी मर्यादा का पालन देखा जा सकता है। रावण के साथ युद्ध करते समय भी उन्होंने कभी नीचता का सहारा नहीं लिया। विजय के बाद जब रावण मरणासन्न था, तब भी राम ने लक्ष्मण को यह सीख दी कि रावण से ज्ञान प्राप्त करो, क्योंकि वह एक महान विद्वान था। यह उदाहरण बताता है कि सच्चा वीर वह नहीं जो शत्रु को अपमानित करे, बल्कि वह जो ज्ञान और गुण का सम्मान करे।

दैहिक दैविक भौतिक तापा।

राम राज्य कबहुँ न व्यापा।।

सब नर करहि परस्पर प्रीति।

चलहि स्वधर्म निरत श्रुति नीति।।

अर्थ: रामराज्य में कोई दुख नहीं था। लोग प्रेम से रहते थे और धर्म का पालन करते थे।

राम का जीवन यह सिद्ध करता है कि धर्म कोई रूढ़ि नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है। उन्होंने दिखाया कि सत्ता, शक्ति और वैभव से बड़ा है – मर्यादा और कर्तव्य। यही कारण है कि त्रेता युग का यह आदर्श आज भी प्रेरणा देता है। राम केवल अतीत के पात्र नहीं, बल्कि एक ऐसे विचार हैं जो हर युग में जीवित रहते हैं।

उदाहरण है।

मर्यादा का मूल अर्थ – मर्यादा = नियम + अनुशासन + सम्मान।

यह एक ऐसी सीमा है, जिसे पार न करके हम खुद को और दूसरों को सम्मान देते हैं।

“वही राम, दशरथ का बेटा, वही राम, घट-घट में लेटा”

त्रेता युग के राम, जिन्होंने वनवास सहा, जिन्होंने धर्म के लिए युद्ध किया, वही राम आज भी हमारे भीतर निवास करते हैं। वे हमारे विचारों में, हमारी आस्था में, और हमारे कर्मों में जीवित हैं।

उसी राम का सकल पसारा, वही राम है सबमें प्यारा”

इस ब्रह्मांड की प्रत्येक रचना में उसी परम सत्ता का विस्तार है, जिसे हम राम कहते हैं। चाहे पेड़-पौधे हों, पर्वत हों या जीव-जंतु, सबमें वही चेतना है। राम किसी एक मूर्ति तक सीमित नहीं, वे समस्त सृष्टि में व्यापी हैं।

वही राम मंदिर में वासे, वही राम हर दिल के पासे”

हम मंदिरों में भगवान की मूर्तियों की पूजा करते हैं, परंतु यह पंक्ति बताती है कि सच्चा राम केवल पत्थर में नहीं, बल्कि हर दिल में बसता है। यदि हम अपने हृदय को पवित्र करें, तो हमें अपने भीतर भी राम मिलेंगे।

वही राम दुख-सुख का साथी, वही राम जीवन की ज्योति”

राम हमारे जीवन के हर क्षण में साथ हैं। सुख के समय वे आनंद का कारण हैं, और दुख के समय आशा और धैर्य का आधार। उनका नाम जीवन में प्रकाश और मार्गदर्शन देता है।

वही राम सबका आधार, वही राम सदा उद्धार”

राम समस्त ब्रह्मांड के आधार हैं। वे धर्म के मूल स्वरूप हैं। उनका स्मरण हमें हर बंधन से मुक्त करता है। वे मोक्ष और उद्धार के दाता हैं।

"आज के राम"

आज का इंसान और राम बनने की चुनौती

आज का मनुष्य राम जैसा बनना तो चाहता है, पर उसकी जीवनशैली और सोच में त्याग, संयम और मर्यादा का गंभीर अभाव है।

 

मर्यादा का अभाव

जहाँ राम ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मर्यादा का पालन किया, वहीं आज व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर सामाजिक और पारिवारिक मर्यादाएँ टूट रही हैं। आचरण में वह अनुशासन और संयम नहीं रहा जो समाज को मजबूत करता था।

 

कर्तव्य से विमुखता

राम ने पुत्र धर्म, भ्राता धर्म और राजा धर्म का पालन करते हुए कभी कर्तव्य से मुँह नहीं मोड़ा। इसके विपरीत आज लोग अपने अधिकारों की माँग तो करते हैं, पर कर्तव्यों से बचते हैं। यही कारण है कि समाज में असंतुलन बढ़ता जा रहा है।

परहित सरिस धरम नहि भाई।

पर पीड़ा सम नहि अधमाई।।

अर्थ: दूसरों की भलाई से बड़ा कोई धर्म नहीं और किसी को दुख देने से बड़ा पाप नहीं।

 

सीता जैसी पत्नी की अपेक्षा और वास्तविकता

आज का पुरुष अक्सर सीता जैसी पत्नी की अपेक्षा करता है, किंतु यह भूल जाता है कि सीता का जीवन त्याग, धैर्य और धर्मनिष्ठा का अनुपम उदाहरण था। यदि पत्नी सीता जैसी होनी चाहिए, तो पति को भी राम जैसा होना पड़ेगा। राम के समान आदर्श, सत्य और त्याग के बिना सीता जैसी जीवनसंगिनी की आशा करना केवल एक भ्रम है।

“सीता राम की थी क्योंकि राम मर्यादा के प्रतीक थे। मर्यादा टूटेगी तो संबंधों की पवित्रता भी खो जाएगी।”

 

त्याग की कमी

आधुनिक मनुष्य का जीवन विलासिता और सुविधा का पर्याय बन चुका है। आज का इंसान इतना अधिक आराम का आदी हो गया है कि छोटी-सी सुविधा भी छोड़ना उसके लिए असहनीय लगता है। अगर बिजली कुछ घंटों के लिए चली जाए या इंटरनेट न चले, तो बेचैनी बढ़ जाती है। यह स्थिति यह दर्शाती है कि हमारा मानसिक और शारीरिक जीवन कितना सुविधाओं पर निर्भर हो गया है।

इसके विपरीत राम के जीवन को देखिए—एक सम्राट, जिसे अयोध्या का राजसिंहासन मिलने वाला था, अचानक वनवास का आदेश मिला। न उन्होंने विरोध किया, न रोष प्रकट किया, बल्कि हर्षपूर्वक पिता के वचन को निभाने के लिए राजमहल, सिंहासन और वैभव को छोड़कर वनगमन किया। यह केवल त्याग नहीं, बल्कि जीवन के सर्वोच्च आदर्श का उदाहरण है।

आज का मनुष्य भौतिक सुखों में इतना उलझा है कि त्याग उसके लिए शब्द मात्र बनकर रह गया है। मोबाइल, गाड़ी, ब्रांडेड वस्त्र या भोग-विलास के बिना जीवन की कल्पना करना भी असंभव हो गया है। छोटी-सी आदत या सुविधा को छोड़ना भी कठिन लगता है, जबकि राम ने 14 वर्षों तक कठोर वन में बिना किसी विलासिता के जीवन व्यतीत किया।

ब्रह्म स्वरूप हो कर भी,

वन में राम विश्राम करें,

राजमहल के सुख छोड़कर,

धूलि में अपना नाम करें।

शिव स्वयं हनुमान बनें,

सेवा में तत्पर हो जाएँ,

शेषनाग लक्ष्मण बनकर,

रक्षक रूप में संग आएँ।

पर तुम क्रोध-अहंकार लेकर,

कपट हृदय में बसाओगे,

तो कैसे पाओगे राम को,

कैसे भक्ति निभाओगे?

अघोर का ज्ञान नहीं है,

फिर भी shiv ka  वरदान माँगते हो,

ब्रह्मचर्य की राह न समझो,

फिर भी हनुमान चाहते हो।

भगवा ओढ़ना आसान सही,

पर उसका अर्थ कठिन बड़ा,

जिसने त्याग को जी लिया है,

उसी ने भगवा सच्चा पढ़ा।

राम से मिलन तुम्हें चाहिए,

तो मंदिर ज़रूर जाना होगा,

पर पहले मन-मंदिर के भीतर,

राम को बसाना होगा।

 

राम का यह त्याग हमें यह सिखाता है कि वास्तविक सुख बाहरी वस्तुओं में नहीं, बल्कि आंतरिक संतोष और कर्तव्यपालन में है। परंतु आधुनिक जीवनशैली में यह सत्य लगभग खो चुका है।

 

सत्य से दूरी

सत्य का स्थान भारतीय संस्कृति में सर्वोच्च माना गया है। राम के जीवन की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उन्होंने हर परिस्थिति में सत्य को सर्वोपरि रखा। चाहे स्थिति कितनी ही कठिन क्यों न रही हो, उन्होंने कभी झूठ या छल का सहारा नहीं लिया। वनवास का आदेश मिलते ही वे आसानी से परिस्थितियों को अपने पक्ष में कर सकते थे, किंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने यह मान लिया कि पिता का वचन निभाना और धर्म की रक्षा करना ही उनका कर्तव्य है। इसी आदर्श ने उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम बनाया।

परंतु आज के युग में सत्य का महत्व घटता जा रहा है। आधुनिक जीवन में झूठ बोलना, आधे-सच को प्रस्तुत करना और परिस्थितियों से समझौता करना आम बात हो गई है। लोग अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए सत्य को ताक पर रख देते हैं। नौकरी में सफलता के लिए झूठे दावे, व्यापार में लाभ के लिए धोखाधड़ी, और व्यक्तिगत जीवन में रिश्तों को बनाए रखने के लिए असत्य का सहारा लेना—ये सब आज की वास्तविकताएँ हैं।

सत्य अब आदर्श नहीं, बल्कि एक विकल्प बन गया है। लोग सोचते हैं कि जहाँ लाभ हो, वहाँ सत्य बोलो; जहाँ हानि हो, वहाँ असत्य भी स्वीकार्य है। यह मानसिकता न केवल व्यक्तिगत जीवन को दूषित करती है, बल्कि समाज की नींव को भी

कमजोर करती है।

राम का जीवन हमें यह सिखाता है कि सत्य का पालन कठिन हो सकता है, लेकिन उसका परिणाम सदैव कल्याणकारी होता है। आज यदि मनुष्य राम के इस आदर्श को अपनाए, तो न केवल उसके व्यक्तिगत जीवन में शांति आएगी, बल्कि समाज में भी विश्वास और नैतिकता का पुनर्जागरण होगा।

शब्द हैं बहुत, पर उनमें साधना की शक्ति नहीं,

स्वर गूंजते हैं, पर उनमें भक्ति की भव्यता नहीं।

अब बस अहंकार की प्रतिध्वनि है,

राजनीति की चालें हैं,

और धर्म के नाम पर

आरक्षण के सौदे हैं।

राम ने जब सत्ता को ठुकराया,

धर्म का दीप जलाया,

त्याग को जीवन का आभूषण बनाया—

पर आज?

भाई-भाई सिंहासन के लिए भिड़ते हैं,

हर ओर यही प्रश्न गूंजता है—

कौन होगा अगला राजा?

कहाँ है वह मर्यादा?

कहाँ है वह सत्य?

कहाँ है वह त्याग,

जो युगों-युगों तक आदर्श था?

हर गली में आज

नई-नई कैकेयी जन्म ले रही है,

हर घर में

नई-नई रामायण लिखी जा रही है।

मंथरा भी जिंदा है आज,

वह अब भी कानों में ज़हर घोलती है,

रिश्तों की जड़ों में फूट बोती है।

और कैकेयी?

वह अब भी अहंकार की आग में

बंधन तोड़ रही है।

राम का आदर्श आज सिमट गया है

अनाथ बच्चों की आँखों में—

जहाँ मासूमियत तो है,

पर सहारा नहीं, सुरक्षा नहीं।

रामायण केवल बीते समय की कथा नहीं,

वह आज भी हमारे भीतर घट रही है।

प्रश्न यह नहीं कि राम कहाँ हैं,

प्रश्न यह है—

क्या हम उनके आदर्शों को अपनाएँगे,

या कैकेयी और मंथरा के अंधकार में

डूबते चले जाएँगे?

"भविष्य के राम"

भविष्य के राम – मानवीय आदर्शों की नई किरण

भविष्य का युग निस्संदेह नए आविष्कारों, तकनीक और सुविधाओं से परिपूर्ण होगा।

लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न यह नहीं होगा कि इंसान क्या-क्या बना सकता है, बल्कि यह होगा कि वह खुद को कितना सँभाल सकता है।

तेज़ रफ़्तार जीवन, बढ़ती महत्वाकांक्षा और अनंत प्रतिस्पर्धा इंसान को थका सकती है।

ऐसे समय में राम का आदर्श ही वह शक्ति बनेगा, जो इंसान को भीतर से स्थिर और बाहर से संतुलित करेगा।

राम से भविष्य का जुड़ाव कैसे होगा?

राम = मर्यादा (Discipline & Values)

जब आधुनिकता की दौड़ इंसान को अस्थिर करेगी, तब राम का संदेश याद दिलाएगा—

कर्तव्य से बड़ा कोई अधिकार नहीं,

मर्यादा से ऊँचा कोई वैभव नहीं,

सत्य से पवित्र कोई मार्ग नहीं।

भविष्य में लोग समझेंगे कि मर्यादा केवल ग्रंथों की बात नहीं, बल्कि जीवन का अनिवार्य नियम है।

जब स्वार्थ बढ़ेगा, राम का त्याग सिखाएगा कि लोककल्याण ही सच्ची सफलता है।

जब अहंकार बढ़ेगा, राम का विनम्र आचरण बताएगा कि असली महानता सेवा और न्याय में है।

रामराज्य भविष्य का कोई बीता सपना नहीं होगा, बल्कि हर समाज का लक्ष्य बनेगा—

जहाँ न्याय और करुणा साथ-साथ हों,

जहाँ प्रगति और संस्कृति एक-दूसरे के पूरक हों,

और जहाँ इंसानियत हर विचारधारा से ऊपर खड़ी हो।

“भविष्य का रामराज्य तकनीक से नहीं, मर्यादा और करुणा से बनेगा।”

“राम हमें यह सिखाते हैं कि बुद्धिमान होना पर्याप्त नहीं, संवेदनशील होना आवश्यक है।”

“जितनी ऊँची इमारतें भविष्य में खड़ी होंगी, उतनी ही गहरी जड़ें राम के आदर्शों की चाहिए होंगी।”

“आज हम राम को पूजते हैं, भविष्य में लोग राम को जीएँगे।”

 

राम कथा: एक अनंत सत्य

त्रेता की कथा केवल बीते समय की बात नहीं,

रामायण कोई युग की सीमित परछाईं नहीं।

यह सत्य है, जो हर काल में साँस लेता है,

पात्र बदलते हैं, मगर प्रश्न वही रहता है।

राम और रावण बाहर नहीं, भीतर रहते हैं,

संघर्ष मैदान का नहीं, मन के भीतर बहते हैं।

कभी विजय राम की, कभी अहंकार रावण का,

मनुष्य की यात्रा यही, युगों से अनवरत का।

मर्यादा ही जीवन का मूलाधार है,

सही राह वही, जो धर्म का सार है।

राम का संदेश सरल पर गहरा है,

मर्यादा ही जीवन का चेहरा है।

पर समय बदला, नाम का अर्थ भी खो गया,

राम जो शांति था, वह शोर में रो गया।

जहाँ कभी नाम था भक्ति और विश्वास का,

अब वही नाम है नारे और राजनैतिक प्रकाश का।

धनुष की टंकार में जहाँ ज्ञान गूंजता था,

रामकथा के स्वरों में जहाँ मन झूमता था,

अब वही मंच शोर में डूब गया है,

सार छूट गया, केवल प्रदर्शन रह गया है।

उत्तर भी वही हैं, बस हमने खो दिए,

अपने भीतर की आवाज़ कहीं दबा दिए।

राम आज भी हैं, बस देखना हमें सीखना होगा,

रावण आज भी है, उसे जीतना हमें जीना होगा।

|| “जय श्री राम” ||

 

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